Saturday, July 31, 2010

वीर-वंदना


शीश नवाता हूँ मैं भारत,
तेरे वीरों को प्रणाम करूँ!
त्याग, समर्पण, अतुल्य महातप,
शौर्य का इनके गुणगान करूँ!!

आसमान में लाखों तारे,
इनसे तीव्र दमकते कौन?
खुद जलके ना जलने देते,
ऐसे दीप कहाँ हैं? कौन?

दिवाली के दीप से चेतन,
होली के सब रंग भी मौन!
ईद की ईदी भी  ये ही हैं,
राखी के रेशम डोर हैं कौन?

तेरे मुकुट के रत्न यही हैं,
और भुजा के शस्त्र यही!
तेरे चरणों के अमृत हैं,
हर अंग का अंश यही!!

झंडे को सब ऊँचा करते,
उस झंडे का चक्र यही!
और उसमें जो तीन रंग हैं,
उन तीनों के श्रोत यही!!

देखन में ये रूखे दिखते,
रूखन का रस लेवे कौन?
जो तू ये रस बाँटन जावे,
तब समझे है रूखन कौन!!

इनका दिल तो बहुत बड़ा है,
तुम संग इनमें मैं निवास करूँ!
शीश नवाता हूँ मैं भारत,
तेरे वीरों को प्रणाम करूँ!!

4 comments:

  1. arre galib sahab.. ab yeh kehne mein koi harz nahi hai ki ap wakai galib hai.. itne accha likha hai apne ki bus dil khush ho gaya.. shaddon ko apne jis gehraai se byaan kiye hai woh kabile tarif hai.. aur apke umda vichar.. apko bahut upar tak le jayenge.. insha- allah apki har mano kamna puri ho..

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  2. hehe shukriya :)
    ummeed hai aise hi likhta rahunga...
    aur accha likhta rahunga.. :)

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  3. bahut achchha likha hai aapne ...........shabda shabda ati sundar

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