Friday, April 24, 2015

दो अनजान..



कौन कमबख्त चाहता है क़ि पुराने तीर निकल जायें।

हम तो इस फ़िराक में हैं क़ि कब अगला तीर इस दिल को चीरे निकल जाये ।।



जो कभी अपना था ही नहीं उसका हम गम नहीं करते। 
ये तो बस ज़ख्म हैं जिनके दाग नहीं भरते ।।

दाग रहे अच्छा है , कमसकम दुनिया को मालूम तो पड़े।

खूबसूरती दाग की मोहताज़ नहीं ।


ये ऐसा दाग है जो अब हम खुद से भी छुपाते हैं
पर क्या करें कभी कभी इन ज़ख्मों को हवा लग जाती है ।।

चादर बन लिपट जाते आपसे अगर साथ होते तो, आप हवा को न कोसो

हवा को कैसे कोस दोगे, हवा ही तो है जो ग़ालिब को "शक्ती" देती है ।।


कौन कमबख्त चाहता है क़ि पुराने तीर निकल जायें।
अच्छा ही है गर एक और तीर इस दिल को चीरे निकल जाये ।।

Saturday, January 28, 2012

chota sa tohfa

Yaad aaye mujhko woh chamchamati shaam,
woh hontho pe chalakte hansi k jaam,
sharm ankhon mein aur dil mein hulchul,
solah shringarr, woh khushi k pal,
bandh gaye hum tum prem k bandhan se...
aur saj duniya meri nayi umangon se,
din guzre, raatein biti, bite kai saal,
bhaa gaya mujhko tera mohabbat ka jaal,
khil uthe bagiche mein phool do anmol,
adaa na kar pau apki chahat ka mol,
shukriya tera, bahut tera shukriya,
vivaah k 6 saal jo saath nibhaya,
chalta rahe humara yeh safar umar bhar,
khushiyon se pyar se, ek duje ke bharose par....

Saturday, July 31, 2010

वीर-वंदना


शीश नवाता हूँ मैं भारत,
तेरे वीरों को प्रणाम करूँ!
त्याग, समर्पण, अतुल्य महातप,
शौर्य का इनके गुणगान करूँ!!

आसमान में लाखों तारे,
इनसे तीव्र दमकते कौन?
खुद जलके ना जलने देते,
ऐसे दीप कहाँ हैं? कौन?

दिवाली के दीप से चेतन,
होली के सब रंग भी मौन!
ईद की ईदी भी  ये ही हैं,
राखी के रेशम डोर हैं कौन?

तेरे मुकुट के रत्न यही हैं,
और भुजा के शस्त्र यही!
तेरे चरणों के अमृत हैं,
हर अंग का अंश यही!!

झंडे को सब ऊँचा करते,
उस झंडे का चक्र यही!
और उसमें जो तीन रंग हैं,
उन तीनों के श्रोत यही!!

देखन में ये रूखे दिखते,
रूखन का रस लेवे कौन?
जो तू ये रस बाँटन जावे,
तब समझे है रूखन कौन!!

इनका दिल तो बहुत बड़ा है,
तुम संग इनमें मैं निवास करूँ!
शीश नवाता हूँ मैं भारत,
तेरे वीरों को प्रणाम करूँ!!

Saturday, April 17, 2010

कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!



कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!


राज़ हैं कई दिल में छिपे, कैसे इनको मैं राज़ रखूं,
तोड़ दिए तेरे बंधन मैंने, पर कैसे खुद आज़ाद रहूँ!

यादों ने तेरी बाँधा मुझको, बाँधा तेरी मोहब्बत ने,
तब बाँधा था बातों ने तेरी, अब बाँधा ख़ामोशी ने!!
कोशिश मेरी रही हमेशा, तुझको मैं आज़ाद रखूं,
तोड़ दिए तेरे बंधन मैंने, पर कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!

लाखों चेहरे देखे मैंने, चेहरे पी चेहरा देखा,
तुने डाले लाखों चेहरे, सबपे एक पेहरा देखा!!
डरता तेरे चेहरों से मैं, कब तक यूँ बर्बाद रहूँ,
तोड़ दिए तेरे बंधन मैंने, पर कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!

तेरा मन है सोने जैसा, देखा मैं व विश्वास करूँ,
लाखों चेहरों पे तेरे फिर, क्यूँ ही मैं ऐतबार करूँ!!
मेरा प्यार है सागर जैसे, कैसे मैं इज़हार करूँ,
तोड़ दिए तेरे बंधन मैंने, अब कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!

तेरा बंधन प्यारा लगता, फिर क्यों न तेरे साथ रहूँ,
तेरी दुविधा पे कैसे फिर, मैं तुझसे नाराज़ रहूँ!!
राहों ने झकझोरा मुझको, कैसे मैं शुक्र गुज़ार करूँ,
तोड़ दिए तेरे बंधन मैंने, पर कैसे खुद आज़ाद रहूँ!!


Wednesday, March 24, 2010

judaai

तनहा रातें अब मेरी कटती नहीं॥
प्यार की प्यास य़ेह भुजती नहीं॥
गुज़ारिश करू रब से अपने॥
बक्श अब के बाद जुदाई और नहीं...

Saturday, February 20, 2010

बेपनाह प्यार

बेपनाह प्यार को मेरे, साथी
कभी तुमने ज्यादा न समझा,
जज्बातों का समंदर मेरा, साथी
कभी तुमने छलकते न देखा...


तारों को खो जाने जा डर, आभ
कभी चाँद ने न समझा,
शाकों से पत्तों का गिरने का दर्द, वृक्ष
कभी मौसम ने न समझा...

बहते हैं कभी मेरे आंसूं, साथी
कभी रोकना न समझा,
चाहत की हमारी दुनिया में, साथी
कभी रहना जरुरी न समझा...

डगमगाती नाव का खौफ्फ़, माझी
कभी मौजों ने न जाना,
मुरझाते फूलों का रुदन, माली
कभी खुदा ने न सुना॥

बाहें फैलाएं खड़ी है निखार, साथी
कभी उन्हें थामना समझो,
हाँ, बेपनाह मेरे प्यार को, साथी
कभी ना समझ के भी समझो....

Thursday, February 18, 2010

ग़ज़ल १


पूछ पाते हैं वो , न बोल पाता हूँ मैं
कैसे हो अब इज़हार , कितनी मजबूरी निकली...

चला था मैं ढूँढने , तुझ में कोई कमी
ये चाहत ढूँढने की , मेरी कमजोरी निकली...

देखकर तुझको बोतल भी , होश में कहाँ है
ज्यादा मांगी थी शराब , थोड़ी थोड़ी निकली...

धड़कने चल रही है , जवाब की उम्मीद में
रुक न जाए इसलिए , निगाह जरूरी निकली...